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विशेष कार्य सिद्धि। इस भयानक घाटीमें होकर पैदल गुजरते भानुचंद्रनी और उनके साथके अन्य साधुओंको बहुत कष्ट उठाना पड़ा । घाटीके तीखे कंकरों और पत्थरोंसे उनके पैर फटने लगे, इससे चलना बड़ा ही कष्ट साध्य हो गया । यह स्थिति देखकर बादशाहने उनको सवारीमें चढ़नेके लिए आग्रह किया। उन्होंने साधुधर्मके विरुद्ध होनेसे सवारीमें चढ़ने से इन्कार कर दिया । बादशाहने भी उनको ऐसी अवस्थामें छोड़कर आगे जाना मुनासिब नहीं समझा । वहीं पड़ाव डाला । तीन दिनके बाद भानुचंद्रजी व अन्य साधुओंके पैर ठीक हुए तब बादशाहने वहाँसे कूच किया।
जब इस मुसाफरीसे लौट कर आये, तब लाहोरमें बड़ा मारी उत्सव हुआ। वहाँ के श्रावकोंने भी भानुचंद्रजी के उपदेशसे बीस हजार रुपये खर्च कर एक बड़ा उपाश्रय बनवाया ।
इसी तरह बादशाह जब 'हनिपुर ' गया था, तब भी भानुचंद्रजी को अपने साथ ले गया था। कहा जाता है कि, यहाँ नगरको लूटनेसे बचाने में भानुचंद्रजी का उपदेश ही काम आया था। इससे वहाँके निवासी इनसे बहुत प्रसन्न हुए थे।
वहाँसे वापिस आगरे आने पर भी उन्होंने बादशाहसे अनेक मीवदयाके कार्य कराये थे । एक वार बाहशाहके सामने किसी विद्वान् ब्राह्मणसे शास्त्रार्थ हुआ । पंडित पराजित हुआ । इससे बादशाह बहुत ही खुश हुआ।
भानुचंद्रनोको ' उपाध्याय ' की जो पदवी थी, वह भी बादशाहकी ही प्रसन्नताका परिणाम था । कवि ऋषभदासने 'हीरविजयरिरास' में इस विषयमें जो कुछ लिखा है उसे हम यहाँ उद्धत करते हैं।
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