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सूरीश्वर और सम्राट् ।
हुओ हकम ते तेणीवार, संभलावे नाम हजार;
आदित्य ने अरक अनेक, आदिदेवमां घणो विवेक ॥ २१ ॥
इससे मालूम होता है कि, बादशाह जब काश्मीर गया था, तब उसने भानुचंद्रजीसे आराधनाके लिए पूछा और उनके बताने पर वह सूर्यकी आराधना करने लगा । भानुचंद्रजीने उसको सूर्यके एक हजार नामोंका स्तोत्र भी सुनाया और सिखलाया था । कवि आगे चलकर यह भी लिखता है कि, बादशाह भानुचंद्रजीको प्रति रविवार स्वर्णके रत्नजडित सिंहासन पर बिठलाकर उनके मुखसे सूर्यके एक हजार आठ नामोंका स्तोत्र सुनता था ।
इसके सिवा एक प्रबल प्रमाण और भी है। वह यह है कि,भानुचंद्रजीने बादशाहको सुनाने और सिखानेके लिए एक हजार एक नामोंका जो स्तोत्र बनाया था उसकी एक हस्त लिखित प्रति पूज्यपाद गुरुवर्य शास्त्रविशारद-जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरीश्वरजी महाराजके पुस्तकभंडारमें है। उसका आरंभिक श्लोक यह है:
" नमः श्रीसूर्यदेवाय सहस्रनामधारिणे ।
कारिणे सर्वसौख्यानां प्रतापाद्भुततेजसे ॥ अन्तका भाग उसका इस प्रकार है:
" यस्त्विदं शृणुयान्नित्यं पठेद्वा प्रयतो नरः । प्रतापी पूर्णमायुश्च करस्थास्तस्य संपदः ॥ नृपाग्नितस्करभय व्याधिभ्यो न भयं भवेत् । विजयी च भवेन्नित्यं स श्रेयः समवाप्नुयात् ॥ कीर्तिमान् सुभगो विद्वान् स सुखी प्रियदर्शनः । भवेद्वर्षशतायुश्च सर्वबाधाविवर्जितः !!
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