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विशेष कार्य सिद्धि।
बीरबलके इस अनुरोधसे बादशाह सूर्यकी उपासना करने लगा था । बदाउनी लिखता है कि:
"A second order was given that the sun should be worshipped four times a day, in the morning and evening, and at noon and midnight. His Majesty had also one thousand and one Sanskrit names for the sun collected, and read them daily, devoutly turning towards the sun."
(Al-Badaoni, translated by W. H.
Lowe M. A. Vol. II p. 332.) अर्थात्-दूसरा यह हुक्म दिया गया था कि, सवेरे, शाम, दुपरह और मध्यरात्रिमें-इस प्रकार दिनमें चार बार सूर्यकी पूजा होनी चाहिए । बादशाहने भी सूर्यके एक हजार एक नाम जाने थे और सूर्याभिमुख होकर भक्तिपूर्वक उन नामोंको बोलता था । .
इस तरह हरेक लेखक लिखता है कि-अकबर सूर्यकी पूजा करता था । मगर किसीने यह नहीं बताया कि, उसने सूर्यके एक हजार एक नाम किसके द्वारा प्राप्त किये थे अथवा उसको सूर्यके नाम किसने सिखाये थे ? जैनग्रंथों में इसके संबंधमें बहुतसी बातें लिखी गई हैं। ऋषभदास कवि तो 'हीरविजयसूरिरास' में यहाँतक लिखता है कि,
"पातशाह काश्मीरें जाय, भाणचंद पुंठे पणि थाय;
पूछइ पातशा ऋषिने जोइ, खुदा नजीक कोने वळी होइ ॥१९॥ 'माणचंद बोल्या ततखेव, निजीक तरणी जागतो देवा ते समर्यो करि बहु सार, तस नामि ऋद्धि अपार ॥ २० ॥
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