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विशेष कार्यसिद्धि ।
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तरह सब मिलाकर एक वर्षमें छः महीने और छः दिनके लिए अकबर ने अपने सारे राज्यमें, जीवहिंसा नहीं होने के फर्मान निकाले थे । इस कथन के सत्यासत्यका निर्णय करना आगेके लिए छोड़ कर, यह बताना आवश्यक है कि, शान्तिचंद्रजीने अकबर के पाससे जीवहिंसा के इतने कार्य कैसे कराये ? कहा जाता है कि, खास कारण ' कृपारसकोश ' नामक काव्य है । अस्तु ।
शान्तिचंद्रजीने उपर्युक्त फर्मानोंके अलावा ' जज़िया बंद करानेका फर्मान भी प्राप्त किया था । इन फर्मानोंको प्राप्त करनेके बाद बादशाहकी सम्मति लेकर गुजरातमें आये और सिद्धपुर में श्रीहीरविजयसूरिसे मिले | गुजरातमें आये तब वे नत्थु मेवाड़ाको साथ लाये थे । शान्तिचंद्रजीके पश्चात् भानुचंद्रजी बादशाहके पास रहे थे । ये ही भानुचंद्रजी हैं कि जो बादशाह के धर्मसभा के १४० वें नंबर के ( पाँचवी श्रेणी ) सभासद थे ।
भानुचंद्र और सिद्धिचंद्र- इन दोनों गुरु शिष्योंनेअकबर के पास रहकर अच्छी ख्याति प्राप्त की । ख्याति ही नहीं प्राप्त की, बल्कि वे अपनी विद्वत्ता और चमत्कारिणी विद्याके प्रभावसे बादशाह के आदरास्पद भी हुए । बादशाह जब कभी फतेहपुर या आगरा छोड़ कर बाहिर जाता था तब वह भानुचंद्रजीको भी अपने साथ ले जाता था । बादशाह सवारी पर जाता था । तब भानुचंद्रजी तो अपने आचारके अनुसार पैदल ही जाते थे । भानुचंद्रजी पर बादशाहकी दृढ श्रद्धा थी । उसको निश्चय हो गया था कि इन महात्माके वचनोंमें सिद्धि है | ऐसी श्रद्धा होनेके कई कारण भी थे ।
एक वार बादशाह के सिर में अत्यंत पीड़ा हुई। वैद्यों और हकीमोंने अनेक उपचार - इलाज किये मगर किसीसे कोई लाभ नहीं हुआ । अन्तमें उसने भानुचंद्रजीको बुलाया और अपनी शिरः पीडाका हाल
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