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सूरीश्वर और सम्राट् ।
सुनने के बाद सुरिजीसे निवेदन करता था कि, मेरे लायक काम हो सो बताइए | इसवार भी उसने ऐसा ही किया ।
सूरिजीने इस बार एक महत्त्वका कार्य बताया । वे बोले :- " आपने आज तक मेरे कथनानुसार कई अच्छे अच्छे काम किये हैं । इसलिए बार बार कुछ कहना अच्छा नहीं लगता है । तो भी लोककल्याणकी भावना कहलाये विना नहीं रहती । इसलिए मेरा अनुरोध है कि, आप अपने राज्यसे ' जज़िया * - कर उठा दीजिए और तीर्थोंमें यात्रियोंसे प्रतिमनुष्य जो ' कर लिया जाता है उसे बंद कर दीजिए । क्योंकि इन दोनों बातोंसे लोगोंको बहुत ज्यादा दुःख उठाना पड़ता है । "
सूरिजी के कथनको मानकर बादशाहने उसी समय दोनों करोंको उठा देनेके फर्मान लिख दिये ।
हीर विजयसूरिरासके कर्ता कविऋषभदासने उस मुलाकातका वर्णन करते हुए यह भी लिखा है कि, बादशाह और सूरिजी में उक्त प्रकारका जो वार्तालाप हुआ था उस समय अनेक दर्बारी मौजूद थे ।
* यद्यपि अकबरने गद्दी बैठनेके नौ बरस बाद अपने राज्यसे ' जजिया उठा दिया था, इसका तीसरे प्रकरणमें उल्लेख हो चुका है, तथापि गुजरात में से
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यह जज़िया ' नहीं हटा था । कारण उस समय गुजरात अकबर के अधिकारमें नहीं आया था । इससे यह सिद्ध होता है कि सूरिजी के उपदेश से उसने ' जज़िया' बंद करनेका जो फर्मान दिया था वह गुजरात के लिए था । 'हीरसौभाग्यकाव्य' की टीकासे भी यह बात सिद्ध होती है । हीरसौभाग्यकाव्य के १४ वें सर्गके २७१ वें श्लोककी टीकामें लिखा है कि'जेजीयकाख्यो गौर्जरकर विशेष: ' [ जजिया ( यहाँ ) गुजरातके 'कर' विशेषका नाम है । ]
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