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प्रतिबोध ।
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पधारे । फतेहपुर और आगरे के बीच में चौबीस माइलका अन्तर है । सूरिजीने वह चातुर्मास आगरेहीमें किया था । पर्युषण के दिन जब निकट आये तब आगरेके श्रावकोंने मिलकर विचार किया कि, बादशाहकी सूरिजी महाराज पर बहुत भक्ति है, इसलिए महाराजकी ओरसे यदि पर्युषणोंमें जीवहिंसा बंद करनेके लिए बादशाहको कहा जायगा तो बादशाह जरूर बंद करा देगा | श्रावकोंने सूरिजी से भी इस विषय में सम्मति ली । सूरिजीकी सम्मति मिलने पर अमीपाल दोसी आदि कई मुखिया श्रावक बादशाहके पास गये और श्रीफल आदि भेट कर बोले :- " सूरिजी महाराजने आपको धर्मलाभ कहलाया है । " सूरिजीका आशीर्वाद सुन कर बादशाह प्रसन्न हुआ और उत्सुकता के साथ पूछने लगा :- " सूरिजी महाराज सकुशल हैं न ? उन्होंने मेरे लिए कोई आज्ञा तो नहीं की है ? " अमीपाल दोसीने उत्तर दिया:- " महाराज बड़े आनंदमें हैं । उन्होंने अनुरोध किया है कि, हमारे पर्युषणोंके पवित्र दिन निकट आ रहे हैं, उनमें कोई मनुष्य किसी जीवकी हिंसा न बातकी मुनादि करा देगें तो अनेक मूक जीव और मुझे बड़ा आनंद होगा । "
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करे। यदि आप इस आपको आशीर्वाद देंगे
बादशाहने आठ दिन हिंसा न हो इस बातका फर्मान लिख दिया | आगरे में यह ढिंढोरा पिटवा दिया कि, आठ दिन तक कोई आदमी किसी भी जीवको न मारे । संवत् १६३९ के पर्युषण के आठ दिन तक के लिए यह अमारी घोषणा हुई थी । 'हीरसौभाग्यकाव्य' और ' जगद्गुरु काव्य ' में इसका उल्लेख नहीं है । मगर 'विजय' प्रशस्ति महाकाव्य में इसका वर्णन है। 'हीरविजयसूरिराम' में ऋषभदास कवि लिखते हैं कि, केवल पाँच ही दिन तक जीवहिंसा नहीं करनेकी घोषणा हुई थी।
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