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सूरीश्वर और सम्राट्। जीने भी यथोचित शब्दोंमें उसका समाधान किया और उसको उपदेश दिया।
उस समय वार्तालापके बीचमें सूरिजीने प्रसंग देखकर पर्युषण के आठ दिनों तक सारे राज्यमें, जीवहिंसा बंद करनेका फर्मान निकालनेका बादशाहको उपदेश दिया । बादशाहने सूरिजीके उपदेशानुसार पर्युषणके आठ दिन ही नहीं बल्कि, अपने कल्याणार्थ चार दिन और जोड़कर १२ दिनका फर्मान निकालनेकी स्वीकारता दी ( भादवा वदी १० से भादवा सुदी ६ तकके बारह दिन)। उस समय अबुल्फ़ज़लने बादशाहसे नम्रता पूर्वक कहा:" हुजूर यह हुक्म इस तरहका होना चाहिए जो आगे हमेशाके लिए काम आवे।" बादशाहने कहाः-अच्छी बात है, यह फर्मान तुम्ही लिखो।" अबुल्फ़ज़लने फर्मान लिखा । उसके बाद वह शाही महोर और बादशाहके हस्ताक्षरके साथ सारे सूबों में भेजा गया।
उस फर्मानमें महोरदस्तखत हो गये, उसके बाद वह राज्यसभामें पढ़ा गया । फिर बादशाहने अपने हाथोंसे उसे थानसिंह को सोंपा। थानसिंहने सम्मानपूर्वक उसे मस्तकपर चढ़ाया और बादशाहको फूलों और मोतियोंसे बधाया ।
बादशाहके इस फर्मानसे लोगोंमें अनेक प्रकारकी चर्चाएं होने लगीं । कई कहते थे,-सूरिजी कितने प्रतापी हैं कि, बादशाहको भी अपना पूरा भक्त बना लिया; कई कहते थे,-मूरिजीने बादशाहको आकाशमें उसकी सात पीढीके पुरुषाओंको बताया; कई कहते थे,-मूरिजीने बादशाहको सोनेकी खार्ने बताई और कई यह भी कहते थे कि, सूरिजीने एक फकीरकी टोपी उड़ाकर बादशाहको चमस्कार दिखाया, इसीलिए वह इनका अनुयायी हो गया है।
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