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सूरीश्वर और सम्राट् । मनुष्यको नौकर रक्खा । उसे ऐतमादखाँका अल्काब दिया गया था। उसने कई ऐसे नियम बनाये कि, जिनसे आमदनीसे संबंध रखनेवाली सारी गड़बड़ी मिट गई और ठीक तरहसे काम चलने लगा।
अकबर उसी साल यानी सन् १९६२ ईस्वीके जनवरी महीनेमें ख्वाजा मुइनुद्दीनकी यात्रा करनेके लिये अजमेर गया था। रास्तैमें दौसा गाँवमें ' अम्बे' (जयपुरकी पुरानी राजधानी ) के राना बिहारीमलने अपनी बड़ी लड़कीको अकबरके साथ व्याह देना स्वीकार किया । अकबर अजमेरसे सीधा आगरे गया और वहाँसे वापिस आ कर साँभरमें उसने हिन्दु-कन्याके साथ व्याह किया । हिन्दु लड़कीके साथ यह उसका पहिला ही ब्याह हुआ था। [ अकबरका लड़का जहाँगीर ( सलीम ) इसी स्त्रीसे उत्पन्न हुआ था ] (ई. स. १५६९)
समस्त भारतमें एक छत्र साम्राज्य स्थापन करनेकी अकबरकी आन्तरिक इच्छा थी । राष्ट्रीय दृष्टि से विचार करेंगे तो मालूम होगा कि, प्रजा उसी समयमें सुखसे रह सकती है कि जब उसे किसी प्रतापी राजाकी छत्र-छायामें रहनेका सौभाग्य मिले । अलग अलग स्वाधीन राजाओंके कारण हर वक्त लड़ाई झगड़े हुआ करते हैं
और उनके कारण प्रजाकी बर्बादी होती है। अतः अकबरने यह निश्चय किया कि, 'एक ही राजाके अधिकारमें सारी प्रजाको रखना।" इस लक्ष्यको सामने रख कर ही उसने छोटे बड़े जिलोंको धीरे धीरे अपने अधिकारमें करना प्रारंभ किया था। और इस भाँति भारतके बहुत बड़े भागको अपने अधिकारमें करनेके लिए अकबरने लगातार बारह वर्ष तक युद्ध किया था। उसकी सारी युद्ध-यात्राओंका वर्णन न लिख कर यहाँ सिर्फ इतना ही लिख देते हैं कि, उसे अपने उद्देश्यमें बहुत कुछ सफलता मिली थी।
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