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सम्राट् - परिचय |
ज्यादा नहीं डाला था । जो कर देना पड़ता था उसका आधार हाकिमोंकी मरजी पर नहीं था । वह पहिलेहीसे नियत था । लोग पहिलेहीसे जानते थे कि हमें कितने रुपये देने होंगे । मगर हिन्दु राजा अपनी इच्छा के अनुसार कर लगाते थे । उनके मनका द्रव्यलोभ ही लोगों से पैसे वसूल करनेका प्रमाण माना जाता था । वे तुच्छ तुच्छ बातोंके लिए पडोसियों से झगड़ा करते थे; युद्ध करते थे । इससे उनकी महत्वाकांक्षा और मूर्खताका परिणाम सारी प्रजाको भोगना पड़ता था; उनको शारीरिक और आर्थिक बहुतसी यातनाएँ भोगनी पड़ती थीं । "
[ मुसलमानी रियासत (गुजराती) भा. १ ला पृष्ठ ४२६ ]
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आज भी कई देशी रियासतें अपनी प्रजाको उपर्युक्त प्रकारकाकर संबंधी - कष्ट दे रही हैं । कुछ अंगुलियों पर गिनने योग्य राजा ऐसे हैं जो प्रजाकी उन्नति के लिए निरन्तर सचेष्ट रहेते हैं; और इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनकी कृति से प्रजाको कहीं दुःख न हो । उनको छोड़ कर भारतमें अब भी - विज्ञान के इस जमाने में भी ऐसी देशी रियासतें हैं कि जहाँ के हिन्दु राजा - आर्य राजा - ऐसे ऐसे काम करते हैं कि, जो मुसलमानोंके सारे जुल्मी कामों को भुला देते हैं ।
अफ्सोस ! जो राजा आर्य हो कर भी अपनी आर्य प्रजासे कठोर कर वसूल करते हैं; प्रजाको नाना प्रकार से सताते हैं; अहिंसक प्रजाके सामने हिंसा करते हैं और कराते हैं; प्रजाके हृदयको दुःख होगा, इसका तिल मात्र भी खयाल नहीं करते हैं, वे वास्तवमें राजा नहीं हैं; प्रजाके मालिक नहीं हैं, बल्कि प्रजाके शत्रु हैं । जो राजा प्रजाको सता कर, उसको दुःख दे कर हर तरहसे अपना भंडार ही भरना चाहते हैं वे राजा कैसे कहे जा सकते हैं ? इस पृथ्वी पर भंडार भरनेके लिए कितने राजाओंने कितने अत्याचार किये ? क्या किसीका भंडार
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