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सम्राट - परिचय |
६९ हजार गवैये और गानेवाली स्त्रियाँ थीं। इनके अलावा उसके दर्बारमें पाँच सौ पंडित, पाँच सौ बड़े प्रधान, बीस हजार अहलकार और दस हजार उमराव थे । उमरावोंमें—-आजमखाँ, खानखाना, टोडरमल, शेख़ अबुल फ़ज़ल, बीरवल, ऐतमादखाँ, कुतुबुद्दीन, शहाबखाँ, खानसाहिब, तलाखान, खानेकिलान, हासिमखाँ, कासिमखाँ, नौरंगखाँ, गुज्जरखाँ, परवेज़खाँ, दौलतखाँ, और निजामुद्दीन अहमद आदि मुख्य थे । अतगवेग और कल्याणराय ये अकबर के खास हुजूरिये थे और हर समय अकबर के पाप्त ही रहते थे । और उसके यहाँ सोलह हजार सुखासन, पन्द्रह हजार पालखियाँ, आठ हजार नक्कारे, पाँच हजार मदनमेर, सात हजार ध्वजाएँ, पाँच सौ विरुदबोलनेवाले - चारण, तीन सौ वैद्य, तीन सौ गंधर्व और सोलह सौ सुतार थे । छियासी मनुष्य अकबरको आभूषण पहिनाने वाले थे, छियासी शरीर पर मालिश करनेवाले थे, तीन सौ शास्त्र बाँचनेवाले पंडित थे और तीन सौ वाजित्र थे ।
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कवि यह भी लिखता है कि, " अकबरकी अर्दली में क्षत्रिय, मुगल, हबशी, रोमी, रोहेला, अंगरेज और फिरंगी भी रहते थे । भोई भी उसके दर में बहुत थे । पाँच हजार भैंसे, बीस हजार कुत्ते और बीस हजार वावरी - चिडीमार भी थे। अकबर ने एक एक कोसके अन्तरसे एक एक हजीरा -छत्री भी बनवाई थी । ऐसे कुल मिला कर एक सौ चौदह हजीरे उसने बनवाये थे । प्रत्येक हजीरे पर पाँच सौ पाँच सींग बनवा कर सजाये थे। दस दस कोस के फासलेसे उसने एक एक धर्मशाला और एक एक कूआ भी बँधवाया था । इतना ही नहीं उन स्थानों में लोगोंके आरामके लिए छायादार दरख्त भी लगवाये थे । एक वार उसने एक एक हरिणकी खाल, दो दो सींग और एक एक महोर भी शेखों के छत्तीस हजार घरों में लहाण-भाजी- की तौर बँढाये थे ।
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