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सूरीश्वर और सम्राट् ।
महाराज ! आप कृपा करके यह बताइये कि आपके धर्म में बड़े तीर्थ कौनर से माने गये हैं । "
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सूरिजीने शत्रुंजय, गिरिनार, आबू, सम्मेतशिखर और अष्टापद आदि कई मुख्य मुख्य तीर्थोंके नाम बताये और साथ ही थोड़ा थोड़ा उन सबका परिचय भी दिया ।
इस तरह खड़े हुए बातें करते बहुतसा वक्त बीत गया । सूरिजी के साथ वार्तालाप करके अकबरको बहुत आनंद हुआ । उसके चित्तमें एक स्थान में निश्चिन्तभावसे बैठकर सूरिजी के मुखकमलसे धर्मोपदेश सुननेकी अभिलापा उत्पन्न हुई । इसी लिए उसने अपनी चित्रशाला के एक मनोहर कमरे में पधारनेकी नम्रताके साथ सूरिजी से विनति की । सूरिजीने भी उपदेशका उचित अवसर जान उसकी विनति स्वीकार की । फिर बादशाह आदि सभी चित्रशाला के पास गये ।
चित्रशाला के दर्वाजे पर एक सुंदर गालीचा बिछा हुआ था । उस पर पैर रख कर चित्रशाला में प्रवेश करना होता था । सूरिजीने उस गालीचेको देखा । वे दवजेके पास जाकर खड़े हो रहे । बादशाह विचार करने लगा कि, सूरिजी ! किस सबसे अंदर आते रुक गये हैं ? बादशाह कुछ पूछना ही चाहता था, इतने में सूरिजी स्वयं बोले:
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राजन् ! इस गालीचे पर होकर हम अंदर नहीं जा सकते, कारण- गालीचे पर पैर रखनेका हमको अधिकार नहीं है । " बादशाहने आश्चर्य के साथ पूछा: "महाराज ! ऐसा क्यों ! गालीचा बिल्कुल स्वच्छ है । कोई जीव-जन्तु इस पर नहीं है । फिर इस पर चलने में आपका हर्ज क्या है ? "
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