________________
सूरीश्वर और सम्राट् । "हाथी, घोड़े, पालखी और दूसरी शाही चीजें साथ दे कर शानके साथ, सम्मान पूर्वक श्रीहीरविजयसूरिको यहाँ भेज दो।"
___ शाहवखाँ स्वयं बादशाहके हाथका लिखा हुआ यह पत्र देख कर निस्तब्ध रह गया। उसे अपना पूर्वकृत स्मरण हो आया,-बादशाहने उन्हीं हीरविजयसूरिको आमंत्रण दिया है कि, जिनको मैंने थोड़े ही दिन पहिले सताया था जिन पर मैंने अत्याचार किया था; जो मेरे सिपाहियोंके डरके मारे नंगे बदन अपनी जान ले कर भागे थे। इन विचारोंने उसके हृदयको हिला दिया। महात्माको कष्ट दिया इसके लिए उसके हृदयमें असाधारण पश्चात्ताप होने लगा । मगर अब क्या हो सकता था । उसने 'गतं न शोचामि कृतं न मन्ये ' सूत्र का अवलंबन कर अपने मालिकके हुक्मको जल्दी बजा लानेकी तरफ़ मन लगाया । उसने अहमदाबादके प्रसिद्ध प्रसिद्ध नेता जैन गृहस्थोंको बुलाया । सब आये। उन्हें बादशाहका पत्र दिया । अपना पत्र भी पढ़ कर सुनाया और कहाः
"शाहन्शाह जब इतनी इज्जतके साथ श्रीहीरविजयसूरिको बुला रहा है तब उन्हें जरूर जाना चाहिए ! तुम्हें भी खास तरहसे उन्हें आगरे जानेके लिए अर्ज करना चाहिए । यह ऐसी इज्जत है कि, जैसी आन तक बादशाहकी तरफसे किसीको भी नहीं मिली है। सूरीश्वरजीके बहाँ जानेसे तुम्हारे धर्मका गौरव बढ़ेगा और तुम्हारे यशमें भी अभिवृद्धि होगी। इतना ही नहीं, हीरविजयसूरिकी शिष्य परंपराके लिए भी उनका यह प्राथमिक प्रवेश बहुत ही लाभदायक होगा । इसलिए किसी तरहकी 'हाँ' 'ना' किये विना हीरविजयसूरिको बादशाहके पास जानेके लिए आग्रहके साथ विनति करो।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org