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प्रकरण पाँचवाँ।
प्रतिबोध ।
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न ज्येष्ठ सुद १३ का दिन है। प्रातःकाल होते ही थानसिंह आदि श्रावक
सूरिजी महाराजके पास आये । सूरिनीके HD हृदयमें स्वाभाविक आनंदका संचार हो रहा है । सूरिजी जिस कार्यके लिए अनेक कष्ट उठा कर, सैकड़ों कोसोंकी मुसाफिरी कर यहाँ आये हैं उस कार्यका आज ही मंगलाचरण करना चाहते हैं । शुभ कार्यको प्रारंभ करनेके पहिले मंगलनिमित्तकार्य निर्विघ्न समाप्त हो इस हेतुसे-अमुक संयम-तप करनेका संकल्प किया जाता है; इसलिए आज उन्हों ने आँबिल करनेका संकल्प किया है। उन्होंने यह भी निश्चित किया है कि, वे कार्यप्रारंभ करनेके बाद ही उपाश्रयमें जावेंगे।
पाठकोंसे यह छिपा हुआ नहीं है कि, सूरिजीको अभी कौनसे महत्त्वका कार्य करना है। अकबरको प्रतिबोध करना ही सुरिजीका साध्यबिंदु है। सवेरे ही सूरिजीने यह व्यवस्था कर ली कि, जिन विद्वान् साधुओंको अपने साथ राजसमामें लेजाना था उन्हें अपने पास रक्खा, दूसरोंको उपाश्रय भेज दिया।
१ 'आंबिल' जैनियोंकी एक तपस्या विशेषका नाम है । इस तपस्याके दिन केवल एक ही वक्त नीरस घी, दूध, दही, गुड़ आदि वस्तुओंसे रहित भोजन किया जाता है।
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