________________
A
आमंत्रण ।
पुरुषको छोटे छोटे राजाओंने आदर दिया इसमें तो आश्चर्यकी कोई बात ही नहीं है। हाँ सूरिजीके उपदेशमें जो विद्युत्-शक्ति थी वह वास्तवमें आश्चर्योत्पादक ही थी । सबसे पहिले तो उनकी शान्त और गंभीर मुखमुद्रा ही सबको अपनी तरफ खींच लेती थी। फिर शुद्ध चारित्रके रंगसे रंगा हुआ उनका उपदेश ऐसा होता था कि, वह कैसे ही कठोर हृदयी पर भी अपना असर डाले विना नहीं रहता था।
मेडतासे सूरिजी विहार कर 'फलौधीपार्श्वनाथ की यात्राके लिए फलौधी भी पधारे और वहाँसे विहार कर सांगानेर पधारे।
श्रीविमलहर्ष उपाध्याय उसी समय-जब कि, सूरिजी साँगानेर पधारे-फतेहपुर-सीकरी पहुँचे । उनके साथ श्रीसिंहविमल आदि विद्वान् मुनि रत्न भी थे। उन्होंने उपाश्रयमें मुकाम करनेके बाद तत्काल ही थानसिंह, मानुकल्याण और अमीपाल आदि नेताओंसे कहाः--" चलो बादशाहसे मिलेंगे।"
उपाध्यायनीकी यह उत्सुकता पाठकोंको जरा खटकेगी। उपाश्रयमें आकर अपने उपकरण उतारते ही, तत्काल ही अम्बरके समान बादशाहसे मिलनेके लिए तत्पर होना, कुछ असभ्यतापूर्ण नहीं तो भी अनुचित जरूर मालूम होगा। उपाध्यायजीकी बात सुन कर थानसिंह और मानुकल्याणने कहा:-" वादशाह विचित्र प्रकृतिका मनुष्य है । सहसा उसके सामने जा खड़ा होना हमारे लिए अनुचित है । इस लिए अभी सब कीजिए । हम जा कर शेख अबुल्फ़ज़लसे मिलते हैं । वह जैसी सलाह देगा वैसा ही किया जायगा।"
__ थानसिंह, मानुकल्याण और अमीपाल आदि कई नेता श्रावक अबुल्फज़लके पास गये और बोले:---- श्रीहीरविजय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org