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आमंत्रण । आदि कुछ भी नहीं है। पैदल ही चलकर गाँव गाँव फिरते हैं। मंत्र, तंत्रादि भी हम नहीं करते । फिर बादशाहने किस हेतुसे हमें (हमारे गुरु श्रीहीरविजयसूरिको ) बुलाया है !"
अबुल्फज़लने कहा:--" बाहशाहको आपसे दूसरा कोई काम नहीं है । वह केवल धर्म सुनना चाहता है।"
उसके बाद अबुल्फ़ज़ल उन चारों महात्माओंको अकबरके पास ले गया और उनका परिचय कराते हुए बोला:
"ये महात्मा उन्हीं हीरविजयसूरिके शिष्य हैं जिनको यहाँ आनेका आपने निमंत्रण दिया है।"
"हाँ ! ये हीरविजयसूरिके शिष्य हैं ! " इतने शब्दोच्चारणके साथ ही बादशाह सिंहासनसे उठा और उपाध्यायजी आदिके-जहाँ वे गालीचेके नीचे खड़े थे-सामने गया। उपाध्यायजीने धर्मलाभ दिया
और कहा-" मूरिजीने आपको धर्मलाभ कहलाया है। 7 बादशाहने आतुरताके साथ पूछा:-"मुझे उन परम कृपालु सूरीश्वरजीके दर्शन कब होंगे ? " उपाध्यायनीने उत्तर दिया:-- अभी वे साँगानेरमें हैं। जहाँतक होगा शीघ्र ही यहाँ पहुँचेंगे।"
___उस समय बादशाहने अपने एक आदमीसे उन चारों महात्माओंके नाम, पूर्वावस्थाके नाम, उनके माता पिताके नाम और गाँवोंके नाम लिखवा लिये और तब-चाहे उनकी परीक्षा करनेके लिए पूछा हो या और किसी अभिप्रायसे पूछा हो-पूछा:-आप फकीर क्यों हुए हैं ? "
उपाध्यायजीने उत्तर दिया:--" इस संसारमें असाधारण दुःखके कारण तीन हैं । उनके नाम हैं जन्म, जरा और मृत्यु । जब तक मनुष्य इन तीन कारणोंसे मुक्त नहीं होता है तब तक उसे
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