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सूरीश्वर और सम्राट्।
सदा भरा रहा ? अरे ! केवल तुच्छ लक्ष्मीके लिए जिन्होंने हनारों, लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों मनुष्योंको कत्ल किया; रक्तकी नदियाँ बहाई वे भी क्या उस लक्ष्मीको अपने साथ ले गये? प्रजा पर जोराना इतना जुल्म करते हैं, वे यदि सिर्फ इतना ही सोचते हों कि,-एक मनुष्य थोडासा अपराध करता है उसको तो हम इसी भवमें दंड देकर उसके पापका फल चखा देते हैं, तब हमें, जो हजारों, लाखों मनुष्योंको दुःख देनेका अपराध करते हैं, उसका दंड कैसा मिलेगा ? खेदकी बात है कि बुद्धिमान् और विद्वान् मनुष्य भी स्वार्थसे अंधे हो कर अपने पर्वतके समान अपराधको नहीं देख सकते हैं; वे अपने अधिकारके मदमें मस्त हो कर इस बातको भूल जाते हैं कि,-' भवान्तरमें उन्हें पापका कैसा दंड भोगना पड़ेगा।
अकबरने अपने दयापूर्ण अन्तःकरणके कारण ही प्रजा पर लगे हुए कठोर कर बंद कर दिये थे। उसने यह भी कानून बनादिया था कि,-मेरे राज्यमें कोई बैल, भैंस, भैंसे, घोड़े और ऊँट इन पशुओंको न मारे । उसने यह भी आज्ञा की थी कि कोई किसी स्त्रीको उसकी इच्छाके विरुद्ध सती होनेके लिए विवश न करे। उसने यह भी घोषणा करवा दी थी कि अमुक अमुक दिन कोई किसी जीवको न मारे । पिछली जिन्दगीमें तो उसने इससे भी ज्यादा दयापूर्ण कार्य किये थे । उन कार्योंका वर्णन आगे किया जायगा ।
अकबरकी इस दयापूर्ण वृत्तिको-दया-गुणको प्रकट करनेवाली उसकी उदारवृत्ति थी । अपने आश्रित मनुष्यों के कामोंकी कदर करना वह खूब जानता था । यह बिलकुल ठीक है कि, बड़ोंका महत्त्व वे अपने आश्रितोंकी कदर करते हैं उसीसे होता है। अकबर इतना उदार था कि,-उसके दुश्मनमें भी कोई गुण होता था तो उसकी वह प्रशंसा करता था। इतना ही क्यों ? दुश्मन होने पर भी उसके
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