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सम्राट्-परिचय। इसका कारण उसकी गुणानुरागता ही है। कई विद्वान यह भी कहते हैं कि, उसने उक्त पुतले उस समय बनवाये थे जब वह मुसलमानी धर्मको छोड़ कर हिन्दु धर्मको मानने लग गया था। मगर हमें तो इस कथनमें भी कोई तथ्य नहीं दिखता है । अस्तु । - इस तरह अकबर, जिसमें जो गुण होता था उसके लिए उसका, अवश्य सम्मान करता था। इतना ही नहीं वह उसका हौसला भी बढ़ाता था। सुप्रसिद्ध वीरबल एक वार बिलकुल दरिद्र था । उस समय उसका नाम महेशदास था। मगर जब वह अकबरके दर्बारमें आया तब अकबरने उसमें अनेक गुण देख कर उसे 'कविराय' के पदसे विभूषित किया था। इतना ही नहीं, जैसे जैसे अकबरको विशेष रूपसे उसके गुणोंका परिचय होता गया, वैसे ही वैसे वह विशेष रूपसे उस पर महरबानी करता गया । परिणाममें वही दरिद्र महेशदास ब्राह्मण दो हजार सेनाका मालिक, 'राजा बीरबल' हुआ
और अन्तमें वह 'नगर कोट' के राज्यका मालिक भी बना। बड़ोंकी महरबानी क्या नहीं कर सकती है ?
इसी तरह सम्राट्ने प्रसिद्ध गवैये तानसेनको और अन्य कइयोंको उनके गुणोंसे प्रसन्न हो कर कुबेरभंडारीके रिश्तेदार बना दिये थे । अपने नायक सम्राट्में कई अकृतज्ञ राजाओंके समान उदारता (1) नहीं थी कि वह उन ( राजाओं) की भाँति किसीके गुणोंसे प्रसन्न हो कर उसका नाक कटवाता और फिर उसे सोनेका नाक बना देता ।
अकवरकी उदारता यहाँ तक बढ़ी हुई थी कि कई वार किसीके हमारों अपराधोंको भूल कर भी उसके भयभीत अन्तःकरणको आश्वासन देता था । इसका हम एक उदाहरण देंगे। .... ऊपर कहा जा चुका है कि, जिस बहरामखाँको अकबर एक वक्त बहुत सम्मान देता था उसी बहरामखाने अकबरके विरुद्ध कई
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