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सम्राट्-परिचय. नाम हमीदाबेगम या मरियममकानी था । वह लड़की यद्यपि किसी राजवंशकी नहीं थी तथापि हुमायुके साथ ब्याह करना उसे पसंद नहीं था । कारण-हुमायुं उस समय राजा नहीं था। इस घटनासे कौन आश्चर्यान्वित नहीं होगा कि, यद्यपि हुमायुं राज्यभ्रष्ट हो गया था; जहाँ तहाँ भटकता फिरता था; कहीं उसे आश्रय नहीं मिलता था; और निस्तेज हो रहा था, तो भी एक तेरह चौदह बरसकी लड़की पर मुग्ध हो कर उससे ब्याह करनेके लिए आतुर बन रहा था! आश्चर्य ! आश्चर्य किसलिए ? मोहराजाकी मायामयी जालसे आज तक कौन बचा है ? कई महीनोंके प्रयत्नके बाद अन्तमें उसकी इच्छा फली । लड़की ब्याह करनेको राजी हुई । ई० स० १५४१ के अन्तमें और १५४२ के प्रारंभमें पश्चिम सिंधके पाटनगरमें उनका ब्याह हो गया। उस समय लड़कीकी उम्र १४ बरसकी थी। इस शादीसे हुमायुंका छोटा भाई हिंडाल भी उससे नाराज हो कर अलग हो गया। हुमायुंके पास उस समय कुछ भी नहीं रहा था । न उसके पास हुकूमत थी, न उसके पास सेना थी और न कोई उसका सहायक ही था । उसके लघु भ्राता हिंडालके साथ बचाबचया जो कुछ स्नेह था वह भी हमीदाबेगमके साथ ब्याह करनेसे नष्ट हो गया। वह निराश्रय और निरावलंब हो कर जहाँ तहाँ भटकता हुआ अपनी स्त्री और कुछ मनुष्यों सहित हिन्दुस्थान और सिंधके बीचके मुख्य रस्ते पर सिंधके मरुस्थलके पूर्व तरफ ' अमरकोट ' ( उमरकोट ) नामका एक कस्बा है उसमें गया। यह एक सामान्य कहावत है कि,-'सभी सहायक सबलके, एक न अबल सहाय ।' परन्तु यह एकान्त नियम नहीं है । यदि यह एकान्त नियम होता तो संसारके दुःखी मनुष्योंके दुःखका कभी अन्त ही न होता । वहाँ पहुँचने पर हुमायुको अपनी महान विपदाका अन्त होनेके चिह्न दिखाई दिये । अमरकोटमें
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