________________
श्रीपाल - चरित्र
परन्तु
हमें यह देख कर बड़ा
पास याचना करने आ रहे थे; ही आश्चर्य हुआ कि आपने हमें देखते ही अपना रास्ता बदल दिया। आप जैसे यशस्वी दानवीरों को इस प्रकार दान से न मोड़ना चाहिये ।
राजा ने कहा- दान से मुँह मोड़ने के उद्देश्य से हमने रास्ता नहीं बदला। खैर, कहो तुम क्या चाहते हो ? भरसक तुम्हारी इच्छा पूर्ण की जायगी।
दूत ने कहा- राजन् ! हमने अपने राजा के लिये समस्त चीजें जुटा ली हैं, परन्तु अबतक रानी का कोई प्रबन्ध नहीं कर सके । यदि कोई सद्गुणी और सुशीला कन्या के लिये आप प्रबन्ध कर सकें, तो हम लोग आपके चिरकृतज्ञ रहेंगे। दूत की यह बात सुन राजा को राज सभा की घटना स्मरण हो आयी। उसने मन में सोचा कि यदि मैना सुन्दरी का ब्याह कोढ़ियों के राजा से कर दिया जाय तो मेरी कीर्ति भी बढ़ सकती है और मैना को भी कर्म फल भोगने का अवसर मिल सकता है। यह सोच कर उसने कहा - तथास्तु ! तुम लोग अपने राजा को लेकर राजसभा में उपस्थित हो मैं अपनी राज - कन्या से उसका विवाह कर दूँगा ।
राजा की यह बात सुन कोढ़ियों का दूत स्तम्भित हो गया। उसे किसी प्रकार विश्वास ही न होता था कि प्रजापाल अपनी राज- कन्या का एक कोढ़ी के साथ ब्याह कर देगा । उसे इस प्रकार असमंजस में पड़ा देख राजा ने डपट कर कहा- मूर्ख ! सोच क्या रहा है? विश्वास रख, कि मेरी बात अब फिर नहीं बदल सकती।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
१९
www.jainelibrary.org