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श्रीपाल-चरित्र
इस प्रकार प्रतिज्ञा कर मन्दिर में बैठे-बैठ तीन दिन बीत गये। इन तीन दिनों में राजा और उनके परिवार वालों ने मुँह में एक दाना भी न डाला। तीसरे दिन पिछली रात में आकाश वाणी हुई कि:- “आप लोग चिन्ता न करें। जिस आदमी के देखने से यह द्वार खुलेंगे, वही रत्नमञ्जूषा का पति होगा। मैं भगवान ऋषभदेव की किंकरी चक्रेश्वरी देवी हूँ। एक मास में वर को लाकर यहाँ उपस्थित करती हूँ।” यह आकाश-वाणी सुनकर राजा और उनके परिजनों को सीमातीत आनन्द हुआ। अनन्तर सब लोगों ने उस समय शान्ति पूर्वक पारणा किया।
हे कुमार ! इस घटना को घटित हुए २९ दिन हो चुके हैं। राज-परिवार बहुत ही उत्कण्ठ पूर्वक उपरोक्त पुरुष के
आगमन की राह देख रहा है। मैं जिनदेव सेठ का पुत्र जिनदास हूँ। आपको देखते ही मेरी यह धारणा दृढ़ हो गयी है कि चक्रेश्वरी देवी आपही को यहाँ ले आयी हैं। मेरी यह भी धारणा है कि उस मन्दिर के द्वार पर आपकी दृष्टि पड़ते ही वे खुल जायँगे। कृपा कर आप मेरे साथ चलिये और जिनेश्वर के दर्शन कर अपना जन्म सफल कीजिये।
जिनदास की यह बातें सुन श्रीपाल ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। इससे जिनदास को सीमातीत आनन्द हुआ। श्रीपाल अपने चुने हुए अनुचरों के साथ रत्नसानु पर्वत की ओर चलने की तैयारी करने लगे।
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