Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 253
________________ २१४ यन्त्रविधि मूल पीठ पर यन्त्रराज के मध्य में अहं बीजाक्षर को स्थापन करना। यह बीजाक्षर ॐकार के मध्य में स्थापन करना । इन दोनों ही मन्त्राक्षरों को ह्रींकार के मध्य में स्थापित करके ह्रींकार की ईकार को पीछे से घुमाकर दो कुंडलाकारों से ऊपर से तीनों बीजाक्षर उसके चारों ओर दिशाओं और विदिशाओं में अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः इन सोलह स्वरों की स्थापना करनी; इस तरह लिखकर - अठारहवाँ परिच्छेद बाहर अष्टदल कमलाकार एक वलय (गोल) बनाना, उसमें क्रमशः पूर्व दिशा - ॐ ह्रीं सिद्धेभ्यः स्वाहा, दक्षिण दिशा में- ॐ ह्रीं आचार्येभ्यः स्वाहा, पश्चिम दिशा में ॐ ह्रीं उपाध्यायेभ्यः स्वाहा, उत्तर दिशा में ॐ ह्रीं सव साधुभ्यः स्वाहा; आग्नेय विदिशा में- ॐ ह्रीं दर्शनाय स्वाहा, नेऋत्य विदिशा में- ॐ ह्रीं ज्ञानाय स्वाहा, वायव्य विदिशा में - ॐ ह्रीं चारित्राय स्वाहा, ईशान विदिशा में ॐ ह्रीं तपसे स्वाहा । पहिले वलय के बाहर सोलह दल का कमलाकार दूसरा वलय बनाना; एकान्तर (एक- एक को छोड़कर) दल रूप कोष्टक में - क ख ग घ ङ, तीसरे में - च छ ज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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