Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
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श्रीपाल-चरित्र
२१५ झ ञ, चौथे में ट ठ ड ढ ण, पाँचवे में-त थ द ध न, छठे में—प फ ब भ म, सातवे में य र ल व, आठवें में-श ह क्ष ज्ञ ; इन अक्षरों को लिखना, शेष आठों में ॐ नमो अरिहंताणं लिखना।
दूसरे वलय के बाहर सोलह कोष्टक वाला तीसरा वलय बनाना, एकान्तर रूप आठ कोष्टकों में क्रमशः आठ अनाहत विद्या दिशि विदिशी में लिखना और शेष आठ अन्तरों में १६ लब्धियाँ अर्थात् प्रत्येक कोष्ठक में दो-दो लब्धियाँ लिखनी चाहिये; इस तरह प्रदक्षिणा करती हुई तीन पंक्तियों में ४८ लब्धियाँ लिखना। ॐ ह्रीं अर्ह नमो जिणाणं इत्यादि ४८ लब्धिपद जानना।
यन्त्र के सबसे ऊपर ह्रींकार लिखना, यन्त्र के बाहर ईकार के तीन वलय देना और चौथे वलय के अन्त में 'क्रौं' अक्षर लिखना, परिधि पर आठ गुरु पादुका- लिखना- (१) ॐ ह्रीं अर्हत्पादुकेभ्यो नमः (२) ॐ ह्रीं सिद्धपादुकेभ्यो नमः (३) ॐ ह्रीं आचार्य पादुकेभ्यो नमः। (४) ॐ ह्रीं पाठकपादुकेभ्यो नमः । (५) ॐ ह्रीं परमगुरु पादुकेभ्यो नमः (६) ॐ ह्रीं अदृष्टगुरुपादुकेभ्यो नमः (७) ॐ ह्रीं अनन्तगुरुपादुकेभ्यो नमः (८) ॐ ह्रीं अनन्तानन्तगुरुपादुकेभ्यो नमः ।
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