Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 257
________________ २१८ अठार हवाँ परिच्छेद - १. युद्ध करना है तो अपने आप से करो २. शुद्ध आचरण ही धर्म है। ३. सत्य के प्रभाव से मनुष्य महासमुद्र में भी सुरक्षित रहता है। ४. अहिंसा अमृत है, हिंसा विष है ५. स्वर्ग और नरक मनुष्य के हाथ में है। ६. मोह रहित मनुष्य दुःख मुक्त है ७. पहिले बनो फिर बनाओं ८. ज्ञानी पुरुष ही संयम साध सकता है। . ९. मनुष्य जीवन में ही सत्य कार्य करने का अवसर उपलब्ध होता है। १०. क्षमा से क्रोध को जीतो। ११. सच्ची वीरता स्वयं को जीतने में है। १२. सत्य की खोज ही सत्य के जन्म की प्रक्रिया है। १३. धर्म की धूरी को खींचने के लिए धन की आवश्यकता नहीं है। -x- - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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