Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 255
________________ २१६ अठार हवाँ परिच्छेद यन्त्र के आधे भाग से बायीं दायीं दो रेखाएँ खींच कर दोनों के जोड़ में कलश का आकार बनानाः उसके पश्चात् पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण चारों दिशाओं में(१) जया (२) विजया (३) जयन्ती (४) अपराजिता तथा आग्नेय आदि विदिशाओं में क्रमशः (१) जम्भा (२) थंभा (३) मोहा (४) श्रद्धा ; इस प्रकार लिखनायन्त्र के ऊपर सौधर्म देवलोकवासी, श्री सिद्धचक्रजी का अधिष्ठायक, बहुत से देव और देवियों के अधिपति श्री विमल स्वामी का ध्यान गुरु से जानकर करना, तदनन्तर रोहिणी आदि सोलह विद्या देवियों, गौमुख यक्षादि चौबीस शासनदेव और चक्रेश्वरीजी आदि चौबीस शासन देवियाँ दायीं बायीं तरफ स्थापना, कलश के मूल में सूर्यादि नौ ग्रहों की स्थापना करनी चाहिए, कलश के गले में नैसी आदि नव विधान का स्थापन करना – (१) नैसर्प (२) पांडुक (३) पिगल (४) सर्वरत्न (५) महापद्म (६) काल (७) महाकाल (८) माणव (९) शंख क्रमशः लिखना। उसके पश्चात् (१) कुमुद (२) अंजन (३) वामन (४) पुष्पदन्न, ये चार दिग्पाल और (१) मानभद्र (२) पूर्णभद्र (३) कपिल (४) पिगल, ये चार वीरों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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