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श्रीपाल-चरित्र
११३ राज-कुमारी अपने कण्ठ में सफेद मोतियों की मनोहर माला पहने, हाथ में वर-माला लिये हुए, गजकी सी मदमाती चाल से सभा-मण्डप के मध्यभाग में पहुँची। वहीं श्रीपाल बैठे हुए थे। उन्होंने कुमारी को अपना प्रकृत रूप दिखा दिया। उनका वह अलौकिक रूप देखते ही वह उनपर मुग्ध हो गयी; किन्तु उनका यह रूप केवल कुमारी ही देख सकती थी। दूसरे लोग तो उन्हें कुरूप ही समझ रहे थे। श्रीपाल ने राजकुमारी के स्नेह की परीक्षा करने के लिये उसे बीच-बीच में अपना कुरूप भी दिखाने लगे। इससे कुमारी बड़े असमन्जस में पड़ गयी। वह निश्चय न कर सकती थी कि इन दोनों में से कुमार का प्रकृत रूप कौन है? फिर भी वह उन पर तन-मन से अनुरक्त हो रही थी।
प्रथानुसार राज-कुमारी की सखियाँ उसके आगे चलती हुई, भिन्न-भिन्न राजाओं की कीर्ति का वर्णन कर, उसे उनका परिचय देने लगीं। जिस समय जिस राजा की कीर्ति का वर्णन किया जाता, उस समय उस राजा का मुखमण्डल प्रदीप्त हो उठता, किन्तु राजकुमारी किसी में देशका, किसी में उम्र का, किसी में रूप का और किसी में शील स्वभाव का दोष बता कर, उसे वरण के लिये अयोग्य ठहराती। कुमारी के इस व्यवहार से उन राजाओं पर मानों घड़ों पानी पड़ जाता था।
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