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श्रीपाल - चरित्र
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इस प्रकार सिंह राजा के द्वारा श्रीकान्त के जो सात सौ सैनिक मारे गये थे, वे दूसरे जन्म में क्षत्री हुए, किन्तु उन्होंने मुनियों को सताने का अपराध किया था, इसलिये वे सबके सब कोढ़ी हो गये । श्रीकान्त राजा का शरीरान्त होने पर पुण्य प्रभाव से वह तेरे अर्थात् श्रीपाल के रूप में उत्पन्न हुआ, किन्तु उसने भी मुनियों को सताया था, इसलिये तुझे इस जन्म में कोढ़ी होना, समुद्र में गिरना और कलंकित होना पड़ा। तेरी जो रानी थी, वह इस समय मैनासुन्दरी हुई है, और तुझे जो ऋद्धि ऋद्धि प्राप्त हुई है, वह रानी के आदेशानुसार तूने जो सिद्धचक्र की आराधना की थी, उसी का प्रताप है। आठ सखियों ने तुम्हारे धर्माराधन की प्रशंसा की थी, अतएव वे तेरी छोटी रानियाँ हुई। इस आठ में से सबसे छोटी ने अपनी सौत को एक बार कहा था कि :- "तुझे साँप काट खाय ! अतएव उसे इस जन्म में साँप ने काटा था । तेरे सात सौ सेवकों ने नवपद महात्म्य की अत्यन्त प्रशंसा की थी, इसलिये वे इस जन्म में राणा हुए।"
सिंह राजा ने सात सौ सुभटों का विनाश किया था, अतएव उसे बड़ा ही खेद हुआ। अन्त में उसने चारित्र ग्रहण किया और एक मास का अनशन व्रत धारण कर शरीर त्याग दिया। दूसरे जन्म में यह सिंह राजा मेरे रूप में उत्पन्न हुआ। उस जन्म में तूने मेरे राज्य पर आक्रमण
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