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सत्रहवाँ परिच्छेद उन्होंने संघ-पूजा और स्वामी वात्सल्यादि कार्य बड़े ही समारोह पूर्वक सम्पादित किये।
इस प्रकार पटरानी मैनासुन्दरी और अन्य आठ रानियों के साथ सिद्धचक्र की आराधना पूर्ण कर राजा श्रीपाल बड़े ही प्रसन्न हुए। अनन्तर उन्होंने अपनी नव रानियों के साथ बहुत दिनों तक राज-सुख उपभोग किया। उन्हें त्रिभुवनपाल आदि नव-गुणवान पुत्र भी हुए। श्रीपाल की उत्तरावस्था में उनके पास नव हजार हाथी, नव हजार रथ, नव लाख घोड़े और नव करोड़ पैदल सेना थी। सब मिलाकर नौ सौ वर्ष पर्यन्त उन्होंने राज किया। पश्चात् वे अपने ज्येष्ठ पुत्र त्रिभुवनपाल को अपने सिंहासनपर आसीन करा, स्वयं नव पद की भक्ति में तन्मय हो गये।
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