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श्रीपाल-चरित्र
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नवें तप पद के बारह भेद होने के कारण बारह गोले रखे और अन्य प्रकार से ५० भेद होने के कारण ५० मुक्ताफल (मोती) रखे। इस प्रकार इन चार पदों की राजा श्रीपाल ने विनय पूर्वक भक्ति की।।
तदनन्तर नव पद के वर्णों के अनुसार वस्त्र, पुष्प और फल प्रभृति रखे। छुहारे, केले, आम, नारंगी, सुपारी, दाडिम प्रभृति अनेक प्रकार के फलों के भी नव-नव ढेर लगाये। सुवर्ण के नव कलश रखे और रत्नों की भी नव ढेरियाँ लगायीं। नव ग्रह और दस दिग्पाल प्रभृति की भी उनके समीप स्थापना की। उनमें भी उनके वर्णानुसार फल, फूल और वस्त्रादि रखे।
इस तरह राजा श्रीपाल ने अत्यन्त उत्साह से उजमना सम्पन्न किया। उजमने के अन्त में प्रभु के बिम्ब को स्नान करा, चन्दन, पुष्प, दीप, अक्षत, फल, नैवेद्य प्रभृति द्वारा अष्ट प्रकार से पूजा की। अनन्तर आरती और मंगल दीपक किया। इस प्रकार जब मंगल अवसर सम्पन्न हुआ, तब समस्त संघ ने श्रीपाल को कुंकुम का तिलक कर अक्षत लगाये और गले में इन्द्रमाल आरोपित की। यह सब क्रियायें पूर्ण होनेपर राजा श्रीपाल जिस समय अपने महल को लौटे, उस समय नाना प्रकार के बाजे बज रहे थे। लोग नाच-गान कर रहे थे। भाट लोग विरदावली बोल रहे थे और चारों ओर उनके नाम का जय-जयकार हो रहा था। महल में आनेपर
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