Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 221
________________ १८२ सत्रहवाँ परिच्छेद तीसरे आचार्य पदके ३६ गुण हैं, अतएव घी शक्कर से भरकर और पीले रंग से रंगकर ३६ नारियल के गोले रखे। साथ ही ३६ गोमेदक रत्न और आचार्य महाराज पाँच आचारों से युक्त होते हैं, इसलिये पाँच पीले मणिरत्न भी रखे। इस तरह राजा श्रीपाल ने आचार्य पद की भक्ति की। चौथे उपाध्याय पद के २५ गुण हैं, इसलिये घी शक्कर से भरकर और नील वर्ण से रंग कर २५ गोले रखे। साथ ही २५ नील रत्न (नीलम) भी रखे। इस प्रकार उपाध्याय पद की आराधना कर अपने को कृतकृत्य समझा। पाँचवें साधु पद के २७ गुण हैं; इसलिये घी शक्कर से भरे हुए और श्याम रंग से रंगे हुए २७ गोले और २७ ही अरिष्ट रत्न ? रखे। साथ ही साधुजी महाराज पाँच महाव्रत के स्वामी होने के कारण पाँच राजपद रत्न? भी रखे इस प्रकार राजा श्रीपाल ने साधु पद की भक्ति कर अत्यन्त पुण्य उपार्जन किया। ___छठे दर्शन पद के ६७ भेद हैं अतएव श्वेत चन्दनसे रंगे हुए ६७ गोले और ६७ उज्ज्वल मुक्ताफल (मोती) रखे। सातवें ज्ञान पद के प्रधान भेद पाँच होने के कारण पाँच गोले रखे और उत्तर भेद ५१ होने के कारण ५१ मुक्ताफल (मोती) रखे। आठवें चारित्र पद के मुख्य पाँच भेद होने के कारण पाँच गोले रखे और दूसरे प्रकार से उसके ७० भेद होने के कारम ७० मुक्ताफल (मोती) रखे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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