Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 230
________________ श्रीपाल - चरित्र १९१ है और जो समस्त जगत के जीवों को उपदेश देते हैं, ऐसे अरिहन्त परमात्मा को मैं तन, मन, वचन और काया से प्रणाम करता हूँ। राजा श्रीपाल ने इस स्तुति में अरिहन्त की वाणी को ३५ गुणों से युक्त बतलाया है। अतः पाठकों की जानकारी के लिये वे ३५ गुण यहाँ अंकित किये देते हैं(१) जिस स्थान में जो भाषा बोली जाती हो, वह भाषा अर्ध मागधी सहित हो (२) ऐसे उच्च स्वर में उपदेश देते हों, कि एक योजन के विस्तार में बैठे हुए सब जीव समान रूप से सुन सकें (३) ग्रामीण तुच्छ भाषा न बोलकर प्रौढ़ भाषा बोलें (४) मेघ गर्जना की भाँति वाणी में गम्भीरता हो (५) विवेक और सरलता पूर्वक ऐसी वाणी बोलें, जिससे श्रोताओं को संतोष हो (७) सभी सुननेवाले यही समझे कि प्रभु हमें ही सम्बोधित कर यह बातें कह रहे हैं (८) वाणी में विस्तार - पूर्वक अर्थ की पुष्टि हो (९) वाणी में पूर्वापर विरोध न हो (१०) मुख से महत्त्व पूर्ण वचन निकलें, जिससे श्रोता लोग सहज ही कह सकें कि महापुरुषों के मुँह से ही ऐसी बातें निकलना सम्भव हैं (११) वाणी ऐसी हो कि जिससे सुननेवालों को सन्देह न हो (१२) व्याख्यान ऐसा हो कि जिसमें खोजने पर भी दोष न मिल सके । (१३) सूक्ष्म और कठिन विषयों पर भी इस तरह बोलें कि श्रोतागण तुरन्त ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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