Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 237
________________ १९८ अठार हवाँ परिच्छेद चिन्तन हैं। जो अनेक लब्धियों से समृद्ध अतिशयवन्त, शासन को सुशाभित करने वाले और राजा की भाँति निश्चिन्त हैं ऐसे आचार्य महाराज को मैं त्रिविध नमस्कार करता हूँ और निरन्तर उनके दर्शन की, उनके उपदेश की और उनके संग की अभिलाषा करता हूँ। इस प्रकार श्रीपाल ने आचार्य महाराज की स्तुति करने के बाद उपाध्याय महाराज की स्तुति करना आरम्भ किया। उपाध्याय पदका वर्णन ___ निरन्तर जो द्वादशांगीका ध्यान करते हैं, उसके अर्थ को पूर्ण रूप से समझते हैं, एवं उसके रहस्य को धारण करते हैं, सूत्रार्थ का विस्तार करने के लिये उत्सुक रहते हैं ऐसे उपाध्याय महाराज को मैं उत्साह-पूर्वक नमस्कर करता हूँ। अर्थदाता आचार्य होते हैं और सूत्रदाता उपाध्याय होते हैं। इस प्रकार के दान विभाग से जो निरन्तर शिष्यगणों को सूत्रार्थ का दान करते हैं, जो तीसरे जन्म में मुक्ति प्राप्त करनेवाले हैं ऐसे उपाध्याय महाराज को मैं नमस्कार करता हूँ। भगवन्त, गणधर महाराज या आचार्य यदि किसी मूर्ख मनुष्य को दीक्षा दे उपाध्याय के पास अध्ययन करने भेजते हैं, तो पत्थर पर अंकुर जमाने की भाँति उसके हृदय में भी ज्ञानांकुर जमा देते हैं-उसे विचक्षण बना देते हैं—ऐसे सर्व पूजित, सर्व सूत्रार्थ के ज्ञाता उपाध्याय महाराज को मैं नमस्कार करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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