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श्रीपाल-चरित्र
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आराधना विधि शुभ मास, शुभ दिवस में गुरुमहाराज के पास विधिपूर्वक आयम्बिल ओली की तपस्या ग्रहण करे-उसके पश्चात् यह तप आसोज सुदि और चैत्र सुदि सप्तमी-यदि तिथि घटती हो छट्ठ, बढ़ती हो तो अष्टमी से पूनम तक नव आयम्बिल करना चाहिए-इस प्रकार एक वर्ष में दो बार करते हुए साढ़े चार वर्ष में नव ओली हो जायेगी।
नौ दिन तक देवसिय राइय प्रतिक्रमण दो समय पडिलेहन, गुरु मुख से पचक्खान करना चाहिए।
त्रिकाल देवपूजा, मध्याह्न में आठ थुई से देववन्दन, प्रत्येक दिन नवपद के नव चैत्यवंदन, जितने गुण हो उतने ही साथिये, प्रदक्षिणा एवं कायोत्सर्ग करना चाहिए। पचक्खाण पारने के चैत्यवंदन के पश्चात् आयम्बिल पुनः चैत्यवंदन, शयन-समय संथारा पोरिसी कहकर भूमि पर संथारा ऊपर सोना चाहिये-शीलव्रत पालन करना चाहिये।
ये नवपद जिनशासन में परम तत्त्वभूत हैं। नवपद का यन्त्र विद्याप्रवाद नाम के नौवें पूर्व से उद्धृत किया गया है; मैनासुन्दरी के समक्ष मुनिश्चन्द्र महाराज ने इस पवित्र यन्त्र की विधि इस प्रकार बताई।
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