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अठार हवाँ परिच्छेद करनेवाले सिद्ध परमात्मा को मैं नमस्कर करता हूँ। उनकी स्तवना करता हूँ और उनकी शरण स्वीकार कर उनके समान होने की अभिलाषा करता हूँ।
जो अनन्त, अपुनर्भव, अशरीरी, अव्याबाध और सामान्य एवं विशेष उपयोगों से युक्त हैं। जो अनन्तगुणी; निर्गुणी किंवा ३१ गुणवाले या आठ कर्मों के क्षय से उत्पन्न होनेवाले आठ गुणों से युक्त हैं। जो अनन्त, अनुत्तर, अनुपम, शाश्वत और सदानन्द ऐसे सिद्ध-सुख प्राप्त कर चुके हैं, वह सिद्ध भगवन्त मुझे शिव सुख देवें। राजा श्रीपाल ने इस प्रकार सिद्ध परमात्मा की स्तुति कर आचार्य महाराज की स्तुति करना आरम्भ की।
___ आचार्य पदका वर्णन जिन्होंने ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार रूप पाँच आचारों का निरतिचार भाव से शुद्धता-पूर्वक पालन किया है और अन्य मुनियों से पालन कराते हैं, जो शुद्ध जिनोक्त दयामय सत्य धर्म को उपदेश द्वारा प्रकाशित करते हैं, उन आचार्य महाराज को मैं नमस्कार करता हूँ और उनसे ऐसे शुद्ध धर्म की प्रेमपूर्वक याचना करता हूँ।
जो छत्तीस-छत्तीसी अर्थात् १२९६ गुणों से युक्त हैं, युग प्रधान हैं, जगत् के जीवों को निरन्तर उपदेश देते हैं, मोह-प्रेम के उत्पन्न करने वाले हैं, एक क्षण के लिये भी क्रुद्ध नहीं होते, ऐसे आचार्य महाराज को मैं विनय-पूर्वक वन्दन करता हूँ।
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