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अठार हवाँ परिच्छेद समझ जायें (१४) बातें प्रस्तावोचित हों (१५) षद्रव्य, नवतत्त्वादिक के स्वरूप को पुष्ट करत हुए ; अपेक्षा युक्त विवक्षित बातें कहें (१६) विषय, सम्बन्ध, प्रयोजन और
अधिकार का विचार कर बातें कहें (१७) वाणी पदरचना से युक्त हो (१८) नवतत्व और षद्रव्य का स्वरूप चातुर्यता-पूर्वक कहें (१९) बातों में ऐसी स्निग्धता और मधुरता हो कि सुनने वाले को घी गुड़ से भी अधिक मधुर प्रतीत हो (२०) ऐसी चतुराई से बातें कहें, जिसमें किसी को यह ख़याल न हो, कि मेरा भण्डाफोड़ कर रहे हैं (२१) धर्म और अर्थ से युक्त बातें बोले (२२) हर एक बातों में दीपक की भाँति प्रकाश कारी अर्थ रहे (२३) किसी बात में पर निन्दा और आत्म प्रशंसा के भाव न हों (२४) ऐसी भाषा हो, जिसे सुननेवाला तुरन्त ही समझ जाय की ये सर्वगुण-सम्पन्न हैं (२५) वाक्यों में कर्ता, कर्म, क्रिया, लिंग, कारक, काल और विभक्ति की अशुद्धियाँ न हों, (२६) ऐसी बातें हों, जिससे सुननेवाले को विस्मय-आश्चर्य हो, (२७) स्वस्थ चित्त से धीरे-धीरे बोले-शीघ्रता न करें। (२८) बोलने में अधिक समय न लगे (२९) बातों से किसी के मन में भ्रांति उत्पन्न न हो, (३०) ऐसी वाणी हो, जिसे वैमानिक, भवनपति, प्रभृति देव मनुष्य और तिर्यञ्च सभी अपनी भाषा में सरलतापूर्वक समझ सकें, (३१) ऐसी बातें हो, जिससे शिष्यों को
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