Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 219
________________ १८० सत्रहवाँ परिच्छेद सुशोभित मण्डप की रचना कर उसके मध्य में नवपदमण्डल बनाना चाहिये । इस मण्डल के बनाने की विधि इस प्रकार है : एक अष्टकोण नव पंखड़ियों का कमल बना कर उसके मध्य भाग में श्वेत धान्य ( चावल ) के अक्षरों में अरिहन्त करना चाहिये । पूर्व दिशा में रक्त धान्य (गेहूँ) से सिद्धपद करना चाहिये । दक्षिण दिशा में पीत धान्य (चने की दाल) से आचार्य पद की रचना करनी चाहिये । पश्चिम दिशा में नील धान्य ( मूँग ) से उपाध्याय पद बनाना चाहिये । उत्तर दिशा में कृष्ण धान्य (उड़द) से साधु पद बनाना चाहिये । चार विदिशाओं- कोणों में श्वेत धान्य (चावल) से दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चारों पदों को बनाना चाहिये । सिद्ध और आचार्य के बीच में दर्शन पद, आचार्य और उपाध्याय के बीच में ज्ञान पद, उपाध्याय और साधु के बीच में चारित्र पद और साधु तथा सिद्ध के बीच में तप पद आना चाहिये । तदनन्तर इस कमल के आस-पास तीन वेदियाँ बनानी चाहिये। इनमें से पहली रत्न सूचक रक्त धान्यमयी, दूसरी सुवर्ण सूचक पीत धान्यमयी और तीसरी रौप्य सूचक श्वेत धान्यमयी बनानी चाहिये। पहली वेदी में मणि श्रेणी सूचक पञ्चवर्ण धान्य के कंगूरे और दूसरी वेदी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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