Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 227
________________ १८८ अठार हवाँ परिच्छेद जाते हैं। (११) संयम लेने के बाद केश और नख नहीं बढ़ते। (१२) कम से कम एक करोड़ देवता साथ रहते हैं। (१३) सभी ऋतुयें सुखदायी होती हैं। (१४) सुगन्धित जल की वृष्टि हुआ करती है। (१५) जल और स्थल में उत्पन्न होनेवाले पुष्पों की घुटने तक वृष्टि होती है। (१६) उत्तम पक्षी प्रदक्षिणा करते रहते हैं। (१७) वायु अनुकूल हो जाता है। (१८) वृक्ष झुक-झुक कर प्रणाम करते हैं। (१९) * आकाश में देवता दुन्दुभी बजाते हैं। ऐसे ३४ अतिशय युक्त जो अरिहन्त परमात्मा हैं उनको मैं त्रिविध नमस्कार करता हूँ। जो प्रभु गर्भ में उत्पन्न होने के समय से ही तीन ज्ञानों से अलंकृत होते हैं। देव जन्म में जितना मति, श्रुति और अवधिज्ञान होता है, उतना नाश न होकर जिनके साथ ही आता है। जो प्रभु अनेक प्रकार की बाह्य ऋद्धियों के स्वामी होनेपर भी, जिस समय जानते हैं कि भोग कर्म क्षीण हो गया है, उस समय एक क्षण का भी विलम्ब न कर, सारे संसार का त्याग कर चारित्र ग्रहण करते हैं। भगवान के आठ प्रतिहार्यों में से अशोक-वृक्ष, सुर-पुष्प वृष्टि, चंवर, सिंहासन, दुंदभी और छत्र-त्रय यह छह प्रतिहार्य १९ अतिशयों में आ जाते हैं। भामण्डल रूप प्रतिहार्य रूप प्रतिहार्य कर्म क्षय से होनेवाले १९ अतिशयों में हैं और दिव्यध्वनि, जो कि देवताओं द्वारा की जाती है, वह वाणी के गुणों के कारण उसी के अन्तर्गत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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