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अठारहवाँ
नवपद- वर्णन
हम अपने पाठकों को पहले ही बतला चुके, कि राजा श्रीपाल अपने ज्येष्ठ पुत्र को सिंहासनारूढ़ करा, स्वयं नवपद के ध्यान में तन्मय हो गये। अब उन्होंने जो नवपदों की आराधना और उनकी स्तुति किस प्रकार की। यह हम विस्तार - पूर्वक अपने पाठकों को इस परिच्छेद में बतलाने की चेष्टा करेंगे। अरिहन्त पदका वर्णन
अरिहन्त पद की स्तुति करते हुए उन्होंने कहा :- तीसरे जन्म में जिन्होंने, बीस स्थानों में से एक किंवा अधिक पदों की आराधना कर तीर्थंकर नाम कर्म प्राप्त किया है और जो १४ स्वप्नों द्वारा सूचित मनुष्यत्व प्राप्त कर चारों निकाय के देवताओं के ६४ इन्द्रों से पूजित हुए हैं, ५६ दिक्कुमारिकायें और असंख्य इन्द्र, जिनका जन्मोत्सव करते हैं, ऐसे अरिहन्त देव को मैं बारंबार वन्दन करता हूँ ।
जिनके पाँच कल्याणकों से अन्धकारमय सप्त नरकों में भी थोड़ा बहुत प्रकाश होता रहता है, जो सब प्राणियों से अधिक गुण और अतिशयों को धारण करने वाले हैं।
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