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श्रीपाल-चरित्र
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छ: अभ्यन्तर बारह प्रकार के तप कर इस पद की आराधना की। __इस प्रकार नवपद की द्रव्य और भाव-पूर्वक भलीभाँति आराधना करते हुए, जब साढ़े चार वर्ष व्यतीत हुए, तब इस तप की समाप्ति हुई। इस समय राजा श्रीपाल ने शास्त्रोक्त विधि के अनुसार बड़ा भारी उजमना किया। जिसका वर्णन होना कठिन है, किन्तु पाठकों की जानकारी के लिये पहले उजमने में क्या-क्या करना चाहिये, वह हम यहां संक्षेप में बताये देते हैं।
नव नये मन्दिर बनवाना। नव पुराने मन्दिरों का उद्धार करवाना और नव नयी जिन प्रतिमाओं का स्थापना करना चाहिये। अनन्तर दर्शन* ज्ञान और चारित्रके समस्त उपकरण नव-नव की संख्या में इकट्ठे कर एक
दर्शन पदके उपकरण-सिंहासन, छत्र, चामर चौकी-पट्टों का त्रिगड़ा, कलश, थाली, रकेबी, बड़ा कटोरा, छोटी कटोरी, बड़ा कलश, कलसा, आचमनी, अष्ट मंगलिक, आरती, मंगलदीपक, धूपदानी, चन्दन घिसनेका ओरसिया, चन्दन का मुट्ठा, केसर की पुड़िया, धूप की पुड़िया, वालाकुची, अंग लुहणा, धोती, चद्दर, कम्बल, मुखकोश-दाढ़ि बन्धना, माला, स्थापनाजी, चन्द्रवा, पूठिया, तोरण, वासकुपी-बासक्षेप रखने की थैली, केसर के डिब्बे, काँच मोरपिछी, पुंजनी, दिवी, ध्वजा, घण्टा, झालर, स्थापना के उपकरण आदि सभी वस्तुएं नव-नव रखना चाहिये। ज्ञान पद के उपकरण में-श्रीपाल-चारित्र की पुस्तक, ठवनी, कोरे कागज के ताव, पटिया, कवली, माला, सांपड़ा, सांपड़ी, चक्कू, कैंची, पुस्तक रखने के डिब्बे, दवात, कलम, पट्टी, बरतना, पेन्सिल आदि चीजें नव-नव रखना चाहिये। चारित्र पद के उपकरण में-पात्रों की जोड़ी, तरपणी, झोली, चोलपट्टा, चादर, पांगरणी, कम्बल, डण्डा, मुहपत्ति दण्डासण आदि वस्तुएं नव-नव की गिनती कर रखना चाहिये।
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