Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 216
________________ सत्रहवाँ परिच्छेद - नवपद की आराधना मैनासुन्दरी के अनुरोध करने पर राजा श्रीपाल ने नवपद की आराधना आरम्भ की। सर्व प्रथम उन्होंने अरिहन्त पद की भक्ति के निमित्त बावन जिनालय वाले नव नये मन्दिर बनवाये। उनमें नव जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवायी। नव जीर्णोद्धार कराये और नाना प्रकार से जिनेश्वर भगवान की भक्ति पूर्वक पूजा की। सिद्ध पद के आराधन के निमित्त उन्होंने सिद्ध प्रतिमा की तीनोंकाल भक्ति-पूर्वक पूजा एवं स्तुति की और तन्मय ध्यान से उसकी आराधना की। आचार्य पद की आराधना के निमित्त, आचार्य महाराज का आदर-सत्कार और उनकी प्रेम पूर्वक वन्दना, वैयावच्च, सुश्रूषा और सेवना की तथा अशनादि-आहार, वस्त्र तथा उपाश्रय आदि के दान द्वारा इस पद की आराधना की। उपाध्याय पद की आराधना में, अध्यापक और विद्यार्थियों को यथायोग्य अशन, वस्त्र, आसन आदि देकर, उनके निवास स्थान का समुचित प्रबन्ध कर दिया। इसी तरह भाव-पूर्वक उक्त पद की आराधना की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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