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श्रीपाल-चरित्र
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मुनिराज ने कहा :-"श्रीपाल! अभी तुझे अनेक कर्मों का फल भोगना है। अतएव इस जन्म में तुझे चारित्र की प्राप्ति होना कठिन है, परन्तु नवपद की आराधना करने से तू नवें लोक में देवता हो सकता है। वहाँ से च्युत होने पर तुझे फिर मनुष्य रूप में जन्म लेना होगा
और इसी प्रकार मनुष्य से देवता और देवता से मनुष्य होते-होते क्रमशः नवे जन्म में तुझे मोक्ष की प्राप्ति होगी।"
__मुनिराज के इस प्रकार मधुर वचन सुनकर श्रीपाल को बहुत ही आनन्द हुआ। उनका शरीर आनन्द के कारण रोमान्चित हो उठा। अनन्तर उन्होंने अजीतसेन मुनि के चरणों में वन्दन कर उनसे विदा ग्रहण की। मुनिराज भी दूसरे ही दिन वहाँ से किसी अन्य स्थान के लिये विहार कर गये। तदनन्तर राजा श्रीपाल ने शीघ्र ही शुभ मुहूर्त देखकर सपरिवार सिद्धचक्र की आराधना आरम्भ की। इस समय मैनासुन्दरी ने श्रीपाल से कहाः- “नाथ! पहले जिस समय हम लोगों ने सिद्धचक्र की आराधना की थी, उस समय हमलोगों के पास धन न था, अतएव प्रत्येक कार्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही किये थे। इस समय अपने पास धन की कमी नहीं है, इसलिये नवपद की आराधना भी हमें वैसे ही समारोह से करनी चाहिये; क्योंकि धन होनेपर भी जो लोग थोड़े धन से
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