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श्रीपाल - चरित्र
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रत्न सूचक रक्त वर्ण धान्य के कंगूरे और तीसरी वेदी में सुवर्ण सूचक पीतवर्ण धान्य के कंगूरे बनाने चाहिये।
इस मण्डल और मण्डप को अनेक प्रकार से सुशोभित करना चाहिये। ध्वजा - पताकाओं से सजाकर उसे ऐसा आकर्षण और रमणीय बना देना चाहिये, जिससे देखने वालों को अत्यन्त आनन्द प्राप्त हो ।
राजा श्रीपाल ने भी पाँचों वर्ण के उत्तम धान्य मँगाकर उन्हें मंत्र से पवित्र करा, उपरोक्त विधि से मण्डल की रचना करवायी । तदनन्तर प्रत्येक पद के गुणानुसार उनपर नारियल के गोले आदि रखे । प्रथम अरिहन्त पद
१२ गुण हैं, अतएव बारह नारियलों के गोले में सामान्य प्रकार से घृत और शर्करा भर, उन्हें श्वेत चन्दन से रंगकर यथा स्थान रखे। इसके बाद आठ महा प्राति-हार्य सूचक आठ कर्केतन रत्न ? रखे और चौंतीस अतिशय सूचक चौंतीस हीरे रखे। इस प्रकार उन्होंने श्रद्धा और भक्तिपूर्वक अरिहन्त पद की अत्यन्त भक्ति की ।
दूसरे सिद्ध पदके ३१ गुण हैं, इसलिये ३१ गोले पूर्वोक्त रीति से भरवाकर लाल चन्दन से विलेपन करके रखे। साथ ही ३१ प्रवाल मूंगे रखे और उनके मुख्य आठ गुण होने के कारण आठ माणिक्य भी रखे। इस प्रकार राजा श्रीपाल ने सिद्ध पद की भक्ति की ।
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