Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 215
________________ १७६ सोलहवाँ परिच्छेद धर्म - कार्य करते हैं, उन्हें उसका सम्पूर्ण फल नहीं मिलता। यह मेरा नहीं बल्कि शास्त्रों का कथन है।” यह सुन कर श्रीपाल ने कहा :- "प्रिये ! मैं तुम्हारी बात से पूर्ण रूपेण सहमत हूँ। हम लोगों को इस कार्य में किसी बात की कोर - कसर रखने की आवश्यकता नहीं है । "अनन्तर राजा श्रीपाल ने बड़े समारोह से नवपद की आराधना आरम्भ की और उनके समस्त परिवार ने भी इसमें योगदान दिया ।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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