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श्रीपाल-चरित्र
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आज यदि यह परम प्रतापी पुरुष यहाँ न आ पहुँचे होते, तो अब तक जाने क्या हो गया होता?"
यह कह, राजा ने अपनी पुत्री को सर्प दंश से लेकर श्मशान यात्रा तक का सारा हाल कह सुनाया। अन्त में वे बोले :- "बेटी! तेरे प्राण इन्हीं महापुरुष ने बचाये हैं। इन्हीं की दया से हम तुझे इस समय जीवित देख रहे हैं। अब मेरी आन्तरिक अभिलाषा यह हो रही है, कि इनके इस उपकार के बदले में तेरा विवाह सम्बन्ध भी इन्हीं से कर दूँ।
पिता की यह बात सुन राजकुमारी ने स्नेहभरी दृष्टि से श्रीपाल की ओर देखा। देखते ही वह उनपर अत्यन्त अनुरक्त हो गयी। लज्जा के कारण उसके दोनों कपोल लाल हो गये। राजा ने तुरन्त ही उसका मनोभाव ताड़ लिया। श्रीपाल के चेहरे पर भी प्रेम-भाव झलक रहा था, इसलिये राजा ने अब विलम्ब करना उचित न समझा। उन्होंने उसी दिन बड़े समारोह से श्रीपाल के हाथों में राज-कुमारी का हाथ सौंप दिया।
श्रीपाल कुमार ने अपनी आठों स्त्रियों के साथ कुछ दिन वहीं पर व्यतीत किये। अनन्तर जिस तरह समकितवंत जीव आठ दृष्टियों से युक्त होने पर भी विरति को चाहता है, आठ प्रवचन माता युक्त मुनि जिस तरह समता को
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