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पन्द्रहवाँ परिच्छेद लगे; क्यों कि उन्हें जो कुछ सुख-सम्पत्ति प्राप्त हुई थी, उसे वे उसी का प्रताप मानते थे। यह एक साधारण नियम है, कि घर में बड़े लोग जो कार्य करते हैं, छोटे लोग अनायास उसका अनुकरण कर वही कार्य करने लगते हैं, अतएव इस समय श्रीपाल कुमार के कुटुम्ब में जितने मनुष्य थे, वे सभी सिद्धचक्र की पूजा भक्ति करने लगे। कुछ समय के बाद श्रीपाल ने अनेक गगनस्पर्शी मन्दिर बनवाये। जिनकी ऊँची ध्वजाये मानों चन्द्रमण्डल का अमृत पान कर रही थीं। साथ ही उन्होंने समूचे राज्य में अमारीपडह बजवाया। न्याय भी ऐसा करते थे, कि लोग राजा रामचन्द्र से उनकी तुलना करने लगे। दान-पुण्य के कारण चारों ओर उनकी इतनी कीर्ति फैल रही थी, कि सब लोग दानवीर कर्ण के नाम को भूल कर प्रातःकाल उन्हीं का नाम लेने लगे। एवं उन्हें कल्पवृक्ष के समान समझने लगे। यह ठीक भी था; क्योंकि कभी किसी को उनके पास से खाली हाथ न लौटना पड़ता था। उनके गुण और उनकी कीर्ति के सम्बन्ध में इतना ही कहना पर्याप्त है कि वे अवर्णनीय थे।
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