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श्रीपाल-चरित्र
१६१ करना-उपचार क्षमा है। क्षमा के भेद पर्याय आदि जानने को विचार क्षमा कहते हैं। बलवान मनुष्य के समक्ष निरुपाय हो, जो क्षमा की जाती है, उसे विपाक क्षमा कहते है। कटु शब्दों से किसी का दिल न दुखाना और दूसरे के कटु शब्द सुनकर स्वयं दुःखी न होना -वचन क्षमा है। आत्मा का धर्म ही क्षमा है यह समझकर क्षमा धर्म की आराधना करना और तेरहवें-चौदहवें गुणठाणे की इच्छा करना-धर्म क्षमा कहलाती है। इनमें से पहली तीन क्षमाओं से लौकिक सुख की और शेष दो क्षमाओं से पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है।
क्षमा के चार अनुष्ठान हैं-(१) प्रीति अनुष्ठान (२) भक्ति अनुष्ठान (३) वचन अनुष्ठान और (४) असंग अनुष्ठान। अनुष्ठान का अर्थ आवश्यक क्रिया है। प्रति क्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान यह तीन प्रीति अनुष्ठान कहलाते हैं। सामायिक, चतुर्विंशति स्तव और वन्दना यह तीन भक्ति अनुष्ठान कहलाते हैं। आगम के अनुसार आचरण करने को वचन अनुष्ठान और जो आसानी से हो जाय उसे असंग अनुष्ठान कहते हैं। स्त्री और माता दोनों नारी जाति
और दोनों प्रिय होने पर भी स्त्री पर जो अनुराग होता है वह प्रीतिराग कहलाता है और माता पर जो अनुराग होता है, वह भक्तिराग कहलाता है। उसी प्रकार प्रतिक्रमण, काउसग्ग
और पच्चक्खाण इन तीनों का बारम्बार सेवन करने से गुण की वृद्धि होती है ; इसलिये यह प्रीति अनुष्ठान माने जाते हैं।
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