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सोलहवाँ परिच्छेद अगाध जल में डुबो दिया ; किन्तु पश्चात् उसे कुछ दया आ गयी, इसलिये उसने उन्हें फिर जल से बाहर निकाल लिया। मुछित अवस्था में उन्हें छोड़, जब वह अपने निवास स्थान को लौटा, तब कौतूहल वश रानी से यह हाल कह सुनाया। सुनते ही राना ने कहा :
"प्राणनाथ! आपने यह बहुत ही अनुचित कार्य किया है। किसी साधारण प्राणी को भी दुःख देने से अनेक जन्म पर्यन्त दुःख सहन करने पड़ते हैं, फिर आपने तो एक मुनि को कष्ट पहुँचाया है। अतएव न जाने कबतक आपको इस पापके फल भोगने पड़ेंगे?"
रानी की यह बात सुन राजा को क्षणिक खेद हुआ। उसने कहा :- “जो हुआ सो हो गया, अब कभी ऐसा काम न करूँगा।" ___ एक दिन की घटना है, कि राजा अपने महल के झरोखे में बैठा हुआ था। उसी समय गोचरी के निमित्त घूमते हुए एक मुनि उधर से आ निकले। राजा को रानी की शिक्षा की विस्मृति हो गयी। उसने अपने आदमियों से कहा :- "इस भिक्षुक ने समूचे नगर को भ्रष्ट कर डाला। इसे इसी समय नगर के बाहर निकाल दो।” राजा की आज्ञा सुनते ही उसके अविचारी कर्मचारियों ने मुनि को धक्का दे, बाहर निकालना आरम्भ किया। संयोगवश यह घटना रानी ने देख ली। उसे जब मालूम हुआ, कि
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