Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 206
________________ राजा श्रीपाल का पूर्व जन्म I इस भरत क्षेत्र में हिरण्यपुर नामक एक नगर है कुल काल पूर्व वहाँ श्रीकान्त नामक एक राजा राज करता था । उसकी रानी का नाम श्रीमती था । वह बड़ी ही गुणवती और शीलवती थी । जैनधर्मपर उसकी पूर्ण श्रद्धा थी । उसमें एक भी अशुभ प्रवृत्ति दिखायी न देती थी ; किन्तु उसके पति अर्थात् राजा को शिकार का बड़ा ही बुरा व्यसन था । रानी उसे बार-बार समझाती कि :― "हे नाथ! आप शिकार खेलने न जाइये; क्योंकि यह प्रवृत्ति नरक ले जाने वाली है । आपके इस काम से पृथ्वी और पत्नी दोनों को लज्जा आती है, इसलिये जीव हिंसा की इस अनीति को छोड़ दीजिये । मुँह में तृण लेने से शत्रु को भी क्षत्री छोड़ देते हैं, तो यह निरपराध पशु, जो नित्यही तृण खाते हैं, इन्हें उत्तम क्षत्री कैसे मार सकता है? यह काम तो किसी गँवार के ही हाथों होना सम्भव है। साथ ही जिसके पास हथियार नहीं होते, उसपर नीतिज्ञ क्षत्री भूलकर भी आक्रमण नहीं करते। फिर आप इस निरीह पशुओं पर कैसे आक्रमण कर सकते हैं ? क्षत्री लोग भागते हुए शत्रु को भी कभी नहीं मारते, तो फिर शिकार के समय जो पशु आपको देखते ही प्राण लेकर भागते हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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