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श्रीपाल - चरित्र
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मेखलाओं की झनकार ऐसी मधुर प्रतीत हो रही थीं, मानो बाजों की मधुर झनकार हो रही थी ।
चम्पानगरी में प्रवेश करनेपर सब राजाओं ने श्रीपाल को उनके पिता के सिंहासन पर आरूढ़ कराया। पटरानी के स्थानपर मैनासुन्दरी का अभिषेक हुआ। शेष आठ रानियाँ उससे नीचे स्थान पर रखी गयीं। मतिसागर प्रधान मन्त्री और धवल के तीनों मित्र उपमन्त्री नियुक्त हुए । अभिषेक और नियुक्तियों का यह समारोह बड़े ही आनन्द से सम्पन्न हुआ । इस अवसर पर श्रीपाल ने याचकों को मुक्त हस्तसे दान दिया और स्वजन स्नेहियों को उपहार प्रदान किया। समारोह पूर्ण होने पर श्रीपाल कुमार न्याय और नीति पूर्वक प्रजा का पालन करने लगे।
यह सब हो जाने पर भी श्रीपाल कुमार अभी धवल सेठ को भूले न थे। उन्होंने कौसम्बी नगरी में उसके उत्तराधिकारियों की खोज करायी और वहाँ से उसके पुत्र विमलको अपने पास बुला भेजा । विमल यथा नाम तथा गुण था - अर्थात् वास्तव में वह विमल ही था । उसके चरित्र और गुणों की भली-भाँति परीक्षा करने के बाद श्रीपाल ने उसे चम्पानगरी में ही रख लिया और उसे नगर सेठ की उपाधि से विभूषित कर विपुल सम्पत्ति का स्वामी बनाया । अनन्तर श्रीपाल कुमार ने प्रत्येक मन्दिर में अट्ठाई महोत्सव कराये और स्वयं सिद्धचक्र की पूजा भक्ति विशेष रूप से करने
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