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श्रीपाल-चरित्र
१३५ कारण विदित न था। उस नटीने रंग-मंचपर अभिनय आरंभ करने के पहले यह दोहा कहा :
"कहँ मालव कहँ शंखपुर, कहँ बब्बर कहँ नट्ट। नाच रही सुरसुन्दरी; विधि अस करत अकाज।।"
नटी के मुँह से यह दोहा सुनते ही राजा प्रजापाल । विचार में पड़ गये। वे सोचने लगे, कि सुरसुन्दरी तो मेरी
वही पुत्री है, जिसे मैंने शंखपुर के राज-कुमार अरिदमन से व्याह दिया था। वह यहाँ-कहाँ ? पर यह नटी क्या कह रही है? इसके कथन से तो यही सिद्ध होता है, कि यह सुरसुन्दरी ही है। यह विचार आते ही उन्होंने नजर उठा कर उस नटीकी ओर ध्यान-पूर्वक देखा। देखते ही उन्हें मानों काठ मार गया उन्होंने देखा कि वास्तव में वह नटी सुरसुन्दरी ही है। वह भी अपने को अब न रोक सकी। तुरन्त रंगमंच से उतर कर अपनी माता सौभाग्यसुन्दरी के पास पहुँची और उसके गले से लिपट कर सिसक-सिसक कर रोने लगी। उसकी यह अवस्था देख, माता ने उसे बहुत आश्वासन दिया। समझाने-बुझाने पर जब कुछ शान्त हुई, तब उसकी माताने कहा :-- "बेटी! जो होना था, सो हो गया। अब तू यह बता कि तेरी यह अवस्था कैसे हुई?"
सुरसुन्दरी ने अपनी राम कहानी माता पिता को संक्षेप में सुनाते हुए कहा:- “आप लोगों ने बड़ी धूमधाम
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