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चौदहवाँ परिच्छेद
से मेरा ब्याह कर मुझे मेरे पति के साथ यहाँ से बिदा किया। हमलोग सकुशल शंखपुर पहुँच गये, किन्तु उस दिन नगर प्रवेश का मुहूर्त्त न मिलने के कारण हम लोग नगर के बाहर ही एक बगीचे में ठहर गये । हम लोगों के साथ काफी आदमी थे; किन्तु उनमें से अधिकांश निश्चिन्त हो, अपने - अपने स्वजन स्नेहियों से मिलने चले गये । हमलोगों ने भी समझा, कि अब कोई खतरा नहीं है, इसलिये उनके जाने में कोई बाधा न दी, किन्तु दुर्भाग्यवश मध्य रात्रि के समय डाकुओं ने हमारे डेरे पर छापा मारा। आपके दामादजी तो प्राण लेकर न जाने कहाँ भाग गये। और मैं डाकुओं के हाथ में पड़ गयी। वे मुझे अपने साथ नेपाल ले गये। वहाँ उन्होंने मुझे बेच दिया । जिस मनुष्य ने खरीदा, वह वहाँ से मुझे बब्बरकुल ले गया और वहाँ उसने एक बड़ी रकम लेकर मुझे वेश्या के हाथ बेच दिया। उस वेश्या ने मुझे गाना-बजाना और नृत्य कला सिखाकर नटी बना दिया । वहाँ के राजा महाकाल नाटकों के बड़े ही शौकीन हैं। उन्हीं के यहाँ नटी होकर रहने के लिये मुझे बाध्य होना पड़ा। जब श्रीपालकुमार वहाँ पहुँचे और इनके साथ राज - कुमारी मदनसेना का ब्याह हुआ, तब राजा ने एक नाटक - मण्डली भी दहेज में दी । मैं भी उसी मण्डली में थी ।
उसी समय से मैं श्रीपाल कुमार के साथ रहकर नटी की तरह जीवन व्यतीत कर रही हूँ। आज आपलोगों को
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